लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) की मुखिया मायावती (Mayawati) का मूल मंत्र एकला चलो का हमेशा से रहा है. परिस्थितियों ने भले ही उन्हें गठबंधन करने को मजबूर किया हो पर यह राजनीति उन्हें अधिक दिनों तक रास नहीं आई. बसपा का सपा के साथ 1993 में किया गया गठबंधन हो या कांग्रेस के साथ 1996 में या फिर लोकसभा चुनाव 2019 में सपा से. गठबंधन के रिश्तों की डोर हमेशा बीच में ही टूट रही है.
क्योंकि मायावती हमेशा ही अपनी शर्तों पर राजनीति के लिए जानी जाती रही हैं. उनका यही अंदाज उन्हें अन्य नेताओं से कहीं अलग पहचान दिलता रहा है, लेकिन पहली बार मायावती की शर्तों की उनके ही सांसद अनदेखी कर रहे हैं. और मायावती उन सांसदों का कुछ कर रही पा रही हैं.
जबकि एक समय था जब उनकी पार्टी का कोई नेता विपक्षी दल के प्रमुख से मिल भर लेता था तो उसे पार्टी के बाहर निकाले जाने का फरमान आ जाता था. पर अब मायावती ऐसा कोई कठोर फैसला ले नहीं पा रही हैं. इस मामले को लेकर वह खामोश है. जबकि उनकी पार्टी के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मिल रहे हैं और ऐसा करने वाले सांसदों के खिलाफ मायावती ने अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया है.
क्यों सांसदों की गतिविधियों को नजरंदाज कर रहीं मायावती
मायावती के इस रुख पर अब यूपी में सवाल पूछे जाने लगे हैं कि आखिर क्यों मायावती भाजपा और सपा के बड़े नेताओं से मिलने वाले पार्टी सांसदों के खिलाफ एक्शन नहीं ले रही है. जबकि अब यह साफ हो गया है कि बीते लोकसभा चुनावों में सपा के साथ हुए गठबंधन के चलते चुनाव जीते दस सांसदों में से कई भाजपा और सपा में जाने का मन बना चुके हैं. और लोकसभा चुनाव होने के पहले पार्टी के यह सांसद भाजपा या सपा का हाथ थाम लेंगे. और यह जानते हुए भी मायावती अपनी पार्टी के सांसदों के भाजपा तथा सपा के नेताओं से मिलने को नजरअंदाज कर रही है. जबकि यह उनके स्वभाव में नहीं हैं. उनकी जिसके भी अनदेखी की उसे मायावती ने करारा जवाब दिया है.अभी यह सभी नेता बसपा के सांसद है, लेकिन यह बसपा के टिकट पर अगला लोकसभा चुनाव लड़ेंगे? यह मानने को यूपी राजनीति के जानकार तैयार नहीं हैं. कुमार भावेश कहते हैं कि वर्तमान राजनीति माहौल में जब सपा और भाजपा की बीच आमने -सामने की टक्कर हो रही है, तब बसपा के ये सांसद बसपा के टिकट पर चुनाव जीतेंगे, इसकी उम्मीद उन्हे भी नहीं है. इसलिए बसपा सांसदों का भाजपा और सपा के नेताओं से मिलना जुलाना हो रहा है.
इसके चलते ही लोग अटकले लगा रहे हैं और 66 साल पहले की एक फिल्म के गाने ” चल उड़ जा रहे पक्षी, यह देश हुआ बेगाना” के जरिये अपने विचार रख रहे है. इस मामले में बसपा नेताओं का कहना है कि मायावती भी यह देखना चाहती है कि उनके सांसदों को अपने पाले में कौन दल लेने की पहल करेगा? इसलिए बहन जी अभी शांत हैं, ताकि उनके सांसदों से हाथ मिलने वाले दल के खिलाफ वह मोर्चा खोल सके.
यही वजह है कि भाजपा के सहयोग से तीन बार उन्होने यूपी में सरकार भी चलायी, लेकिन जैसे भी भाजपा ने उन्हे आंख दिखायी तो उन्होने भाजपा से नाता तोड़ लिया. तो ऐसे में अब वह क्यों भाजपा और सपा नेताओं से मिलने वाले पार्टी के सांसदों को अनदेखा कर रही है? और इसकी वजह क्या है? इस सवाल को लेकर के बड़े अखबार के पूर्व संपादक कुमार भावेश कहते हैं कि यूपी की राजनीति में बसपा अब हासिए पर पहुंच गई है.
अब वह एक विधायक वाली पार्टी है. और बीते लोकसभा चुनाव में पार्टी के जो दस सांसद सपा के साथ हुए गठबंधन के कारण चुनाव जीते थे, उन्हे लगता है कि बसपा के झंडे तले चुनाव लड़ने पर वह जीतेंगे नहीं. इसी वजह से बसपा के कई सांसद नया ठिकाना खोजने लगे हैं. या यो कहे कि बसपा के कई सांसदों को अब बसपा रास नहीं आ रही है. इसलिए वह नया ठिकाना खोज रहे हैं. ऐसी इच्छा रखने वाले सांसदों की मंशा कौन दल पूरा करेगा, यह देखना है.